निवेश के मामले में निवेशकों का दो शब्दों से बार-बार सामना होता है एसेट एलोकेशन और डायवर्सिफिकेशन. क्या होते हैं एसेट एलोकेशन और डायवर्सिफिकेशन, इनमें क्या है फर्क? देखिए ये वीडियो.
निवेश के लिए म्यूचुअल फंड अच्छे विकल्प साबित हो रहे हैं. लेकिन 45 एसेट मैनेजमेंट कंपनियों की 1500 से अधिक स्कीम होने की वजह से सही स्कीम का चुनाव करना मुश्किल होता है. Mutual Fund में कैसे करें निवेश की शुरुआत, निवेश शुरू करने पर स्कीम देखें या Asset Allocation?
अलग-अलग एसेट्स में निवेश करने वाले फंड को भारतीय म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री में मल्टी-एसेट फंड या एसेट एलोकेशन फंड के रूप में जाना जाता है.
किसी भी निवेश पोर्टफोलियो को तैयार करने के लिए डायवर्सिफिकेशन और एसेट अलोकेशन का काफी महत्व होता है. दोनों का मकसद जोखिम को कम करना होता है.
एसेट के सही आबंटन पर फोकस करें. इसमें निवेशक विभिन्न एसेट क्लास में निवेश करता है. ताकि, किसी एक एसेट में आई गिरावट की भरपाई दूसरे से की जा सके.
पोर्टफोलियो का डायवर्सिफिकेशन महत्वपूर्ण है और लॉन्ग टर्म में स्थिर रिटर्न के लिए इसका पालन किया जाना चाहिए.
एसेट एलोकेशन रणनीति के कई लाभ हैं. इसके लिए कई काम्प्लेक्स मॉडल और एसेट वर्गों की अच्छी समझ की ज़रूरत है.
हर एक निवेशक के लिए एसेट एलोकेशन अलग-अलग होगा. सभी के लिए एक फॉर्मूला नहीं है.
UTI AMC के फंड मैनेजर और हेड-रिसर्च सचिन त्रिवेदी ने कहा कि इन्वेस्टर को लंबी अवधि के लिए एसेट एलोकेशन करना चाहिए और रोजाना ट्रेडिंग से बचना चाहिए.
इक्विटी से बेहतर रिटर्न और कोई एसेट नहीं दे सकता लेकिन पॉजिटीव रिटर्न कमाने के लिए जरूरी है कि लंबे समय तक निवेश करें